स्वास्थ्य क्षेत्र के बजट 2020 से लोगों की उम्मीदें
नरजिस हुसैन
बजट 2020 से हेल्थ सेक्टर को कई उम्मीदें हैं। हालांकि, हम सभी अब यह जान रहें है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की गति लगातार धीमी होती जा रही है और ऐसे में आने वाले बजट से बहुत ज्यादा उम्मीदें बांधना सही नही होगा लेकिन, पिछले कुछ सालों से विशेषज्ञों का मानना है हेल्थ और फार्मा सेक्टर के सामने बड़ी चुनौतियां आती जा रही है जिन्हें वक्त रहते हल करना होगा।
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स्वास्थ्य के क्षेत्र में सबसे पहले जानकार मानते हैं कि इस बजट के जरिए सरकार को इस क्षेत्र को ढांचागत सुविधाएं देनी चाहिए इसके अलावा स्वास्थ्य सुविधाएं की पहुंच सबके दायरे में लानी होगी। टैक्स में राहत के साथ ही एक व्यापक हेल्थकेयर पॉलिसी के बारे में भी सरकार से खूब उम्मीद की जा रही है। जानकारों का कहना है और जो सच भी है कि देश में प्रशिक्षित डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ का बहुत अभाव है और यह सबसे बड़ी चुनौती है जिसे बजट में ध्यान देना होगा। इस वक्त देश में 6 लाख डॉक्टरों, 20 लाख नर्सो की कमी है या यूं समझिए कि जरूरत है। हर 1000 लोगों पर अस्पतालों में 0.9 पलंग है। देश को न सिर्फ ग्रामीण बल्कि शहरों में भी प्रशिक्षित स्टाफ और बुनियादी सुविधाएं देने का प्रावाधान सरकार को इस बजट में देना चाहिए।
आयुषमान भारत सरकार की एक अच्छी पहल मानी जा सकती है लेकिन, अगर भारत सरकार इस फ्लैगशिप प्रोग्राम में डिजिटल हेल्थ, वेलनस, रोग नियंत्रण कार्यक्रम और निगरानी कार्यक्रम भी जोड़ दे तो सूरत पहले से बेहतर हो सकती है। हेल्थ सेक्टर के जानकारों का मानना है कि अब सरकार को चाहिए कि यहां भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की पहल करें ताकि शहरों से दूर गांव-देहातों के क्लीनिक और हेल्थ सेंटरों में भी नई तकनीक पहुंच सके। यही नहीं तेजी से बढ़ते इस सेक्टर को सरकार को इस बजट में और आसान पहुंच वाला बनाना होगा। स्वास्थ्य सुविधाओं से कोई छूट न जाए ये लक्ष्य सरकार को तय करना होगा।
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कुछ इस तरह की उम्मीदें भी सरकार से हैं कि बीमारियों की रोकथाम, उपचार और स्वास्थ्य बीमा को कुछ तरह बजट में सरकार जोड़े कि जिससे आम आदमी ज्यादा से ज्यादा फायदा हो। सरकार को बजट में युनिवर्सल हेल्थ कवरेज के लक्ष्य को साधने के लिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के तहत बीमा, उपचार और निदान को एक साथ जोड़ना होगा। जानकारों की सरकार ने आशा है कि इलाज में तेजी से बढ़े खर्च के चलते आम आदमी अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं से खुद को बाहर पाता है। बड़े सरकारी अस्पतालों में नंबर देर में आता है और प्राइवेट अस्पतालों का खर्च बीमार की कमर तोड़ देता है। इसके मद्देनजर बजट में सरकार ऐसी योजनाओं या पॉलिसी की बात करे जो गरीब आदमी की पहुंच में हो। भारत का नाम उन देशों में ऊपर है जहां स्वास्थ्य सुविधाओं का खर्च आम आदमी की जेब से बाहर है। आर्थिक मंदी के चलते लोगों ने स्वास्थ्य सुविधाओं और बीमा पर खर्च कम कर दिया है जो अच्छा संकेत नहीं है न सरकार के लिए न मार्केट के लिए और न ही उन लोगों के लिए।
विशेषज्ञ सरकार का ध्यान नॉन-कम्युनिकेबल डिजिज यानी असंचारी बीमारियों की तरफ भी ले जाना चाहते हैं। क्योंकि आज देश में यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है और इससे मरने वालो की तादाद कुल मरने वालों का 61 प्रतिशत है जोकि अपनेंआप में काफी चिंताजनक है। इस वक्त सरकार को अनुदान देकर कम्युनिटी हेल्थ वर्करों को आधुनिक मेडिसिन के बारे में ट्रेनिंग देनी चाहिए ताकि दूर-दराज के इलाकों में डॉक्टरों तक पहुंचने से पहले मरीज की जान बच सके।
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सरकार को टीयर वन और टू शहरों में प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर ज्यादा खर्च करने की जरूरत है। उधर, हेल्थ सेक्टर से जुड़े कई लोगों का मानना है सरकार को जीएसटी पर पुर्नविचार करना होगा और देश में बने मेडिकल उपकरणों के प्रचार और प्रासर पर जोर देना चाहिए।
यही नहीं हेल्थ सेक्टर को सरकार से रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए अनुदान मिलने की भी उम्मीद है। कुछेक का मानना है कि सरकार को इस बजट में फेडरेशन ऑफ हेल्थकेयर डेटा के विकास के लिए फंड करना चाहिए ताकि इस क्षेत्र में सरकार को योजनाएं बनाते समय सही डेटा मिल सके। हांलाकि, इस डेटा फडरेशन से रिसर्च को भी फायदा पहुंचने वाला है जहां से क्षेत्र को आगे बढ़ने का रास्ता मिलेगा। जब तक सरकार इस क्षेत्र में अनुदान से हाथ खींचती रहेगी तब तक इस क्षेत्र में बेहतर नतीजों की उम्मीद करना बेमानी होगा।
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